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श्री सत्य नारायण (Motivational Speaker, Writer & Healer)
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S. N. Prajapati

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I am Motivational speaker, writer, Reiki Trainer, My workshops on this subjects- Mind Programming and Attract money methods workshops . I am proprietor of Urja Enterprises and MD of Urja Publication. My four books are published 1- विचारों की शक्ति और सफलता 2- सफलता आपकी सोच में है 3- समाधान खोजें और सफल हो जाये 4- विचार परिवर्तन और सफलता And fifth book ready to publish.

अपनी सफलता को पहचानिए. Recognise your success.

Penulis : Satya Narayan on Tuesday 30 July 2013 | 03:38

Tuesday 30 July 2013

Lucknow :  ‘‘लोगों में आपकी चर्चा आपकी सफलता को प्रमाणित करती है।‘‘ हर तरफ आपकी चर्चा होने का स्पश्ट मतलब है कि आप सफल हो रहें है। आपको मालूम है कि आप सद्मार्ग पर महान लक्ष्य की पूर्ति के लिए अग्रसर है तथा स्वयं के साथ ईश्वर पर पूर्ण आस्था है। कुछ लोगों की नजर में आपके विशय में अवश्य ही गलत फहमी हो जायेगी। पहचान के लोगों में आपकी बुराईयां इसलिए होंगी कि दूसरों की तरह आप धन नहीं कमाते और मात्र रचनात्मक कार्यों में अपना समय खर्च करते हैं।



जब आस-पास एवं दूर के लोगों में आपका मजाक बनाया जा रहा
समझदार व्यक्ति ऊंचे स्तर पर इसलिए होते हैं कि वे निम्न स्तर पर रहने वालों को भी ऊपर उठाने की सार्थक कोशिश करते हैं। आप को ऐसे व्यक्तियों से नफरत, घृणा नहीं अपितु सहानुभूति रखनी चाहिए। वे आपको नीचा दिखाने की भावना से खुद को ही नीचे गिरा रहे हैं वे बेचारे दुःखी अवस्था में हैं। विश्वास के नियम को समझने वाले कभी असफल नहीं होते हैं यही प्राकृतिक नियम है। पहचान के लोगों में आपकी बुराईयां इसलिए होंगी कि दूसरों की तरह आप धन नहीं कमाते और मात्र रचनात्मक कार्यों में अपना समय खर्च करते हैं। ईश्वरीय योजनाओं के अनुसार चलने वालों के साथ कोई धन की कमी नहीं होती है लेकिन कुछ नकारात्मक व्यवहार, विचारों वाले लोग इसी बात से आपको नीचे गिराने की असफल कोशिशें करते रहते हैं।
हो, आपके घर वाले भी आपके सादगी भरे व्यवहार से ईर्ष्या करते हों और वे लोग दूसरों से आपकी आलोचना करने लगें तब आप यह समझ लीजिए कि आप बहुत तेजी से सफलता की तरफ बढ़ रहें हैं।
ईश्र्या, द्वेश और आपकी तरक्की से जिन मित्रों, परिजनों, रिश्तेदारों को जलन होती है और जो आपकों आगे बढ़ते हुए देखकर कूढ़ते हैं, उनमें आपके विषय मे नकारात्मक बहस होती है जैसे कि कोई आपको मूर्ख कहेगा तो र्कोई पागल तथा कोई कायर, कामचोर, बर्बाद करने वाला, तो कोई बेवकूफ कहेगा। इस तरह वे दूसरों में भी आपकी नकारात्मकता को ही प्रकट करेंगे। शवे आपकी प्रशंसा न करेंगे और न ही सुनना चाहेंगे। उनके सामने आपकी प्रशंसा करने वाला भी उनकी नजर में बुरा बन जाता है।

आपने ईश्वरीय योजना के अनुसार सद्मार्ग को चुना है आपने दिल की गहराइयों से समझा है कि इस मार्ग पर चलने की प्रेरणा परमात्मा ने आपकों उपहार में दी है और आपका यह परम सौभाग्य है कि आपके इस मार्ग पर चलने की शक्ति भी ईश्वर ने ही दी है। आप जानते हैं कि ईश्वर ने आपके चारों ओर तमाम रिश्तों के रूप में प्रशिक्षक हर क्षण मौजूद हैं जो अपकों प्रशिक्षित कर रहें हैं। ईश्वर ने आपकों यह ज्ञान भी दिया कि आपके जीवन में जब तक धन का अभाव रहेगा तब तक आपका प्रशिक्षण न पूरा हो जाय। लेकिन यह भी आश्वासन दिया कि दुनिया की कोई बाधा आपका मार्ग नहीं रोक सकती है। ईश्वरीय योजनाओं के अनुसार चलने वालों के साथ कोई धन की कमी नहीं होती है लेकिन कुछ नकारात्मक व्यवहार, विचारों वाले लोग इसी बात से आपको नीचे गिराने की असफल कोशिशें करते रहते हैं।

यह अपका परम सौभाग्य है कि उन्ही लोगों को आप अपना हितैशी मानते हैं वे लोग आपकी आलोचना करके आपको मजबूत बनाते है। दूसरी तरफ कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो आपके कार्य से बेहद खुश होते हैं वे आपको समझ पाते हैं परन्तु ऐसे लोगों की संख्या बहुत कम होती है लेकिन ईश्वर आपके पास ऐसे दानी, विद्धान व्यक्तियों को अवश्य भेजते हैं कि वे ज्ञान एवं धन दोनों भरपूर मात्रा में देकर आपकों आगे बढ़ने में मदद करते है। आपकी आस्था के अनुरूप ही मिलता हैं।

वे लोग जब आपके कार्यों के विषय में दूसरों से इस भावना से जानकारी लेने की कोशिश करते है कि आप असफल कब हो रहे हैं? अर्थात उनका ध्यान आपकी असफलता पर केन्द्रित रहता है, वे आपके आस-पास के लोगों से आपकी सफलता नहीं अपितु आपकी असफलता के विशय में जानने की जिज्ञासा रखते हैं तथा उनकी ऐसे व्यक्ति से चापलूसी भरे अन्दाज में मित्रता भी हो जाती है जो आपके विपक्ष में उनके हां में हां मिलाते हैं। आप को ऐसे व्यक्तियों से नफरत, घृणा नहीं अपितु सहानुभूति रखनी चाहिए। वे आपको नीचा दिखाने की भावना से खुद को ही नीचे गिरा रहे हैं वे बेचारे दुःखी अवस्था में हैं। 

मात्र धन के लिए वे आपको बार-बार अपमानित करने की तुच्छ हरकतें करते रहते हैं लेकिन आपको अपनी सफलता को पहचानने की लगातार कोशिशें करते रहनी हैं आपका प्रशिक्षण कठिन से कठिन हो सकता है। अतः आप को अपने धैर्य की सीमा को पार करने की गलती नहीं करनी है। यही तो आपकी सच्ची परीक्षा है। वे अपने आपको हर बार नीचे गिराते जा रहें हैं और आपका कुछ नहीं बिगड़ने वाला आप जानते हैं कि ‘‘जो लोग खुद ही निम्न स्तर पर होते हैं वही दूसरों को नीचे झुकाने की मूख्र्रता करते हैं।‘‘

‘‘समझदार व्यक्ति ऊंचे स्तर पर इसलिए होते हैं कि वे निम्न स्तर पर रहने वालों को भी ऊपर उठाने की सार्थक कोशिश करते हैं।‘‘ आपके जीवन में जब अपने प्रति दुव्र्यवहार करने वाले को माफ कर देने की अवस्था आ जाये तो यह समझिए कि आप सकारात्मक सफलता प्राप्त कर रहे हैं।

आत्मसंयम का होना आपकी सफलता का मूलमंत्र है। यह एक अद्भुत शक्ति है जिसको आप विपरीत परिस्थितियों में सिद्ध करने का सुनहरा अवसर नहीं खोना चाहते। आप यह अनुभव कर पाते हैं कि आपके भीतर की अद्भुत शक्ति आपको अनन्त शक्ति के स्रोत से जोड़कर आपको ऊर्जावान बना रही है और आप उन बुरी शक्तियों को दूर बैठे-बैठे नष्ट कर देते हैं आपने अपने भीतर के शाश्वत को अनुभव किया है वे जागृत अवस्था में प्रकट होने लगती हैं। आपका आत्म-सम्मान सन्तुलित एवं निश्पक्ष व्यवहार करने में प्रशिक्षित होने लगता है। ऐसी अवस्था में बुरी शक्तियां विचलित एवं विक्षिप्त महसूस इसलिए करती हां कि वे आपको स्वयं से कई गुना ऊपर एवं शक्तिशाली मानती हैं। उनके तुच्छ प्रभाव को आपके भीतर से निकलने वाली शुभ एवं सकारात्मक ऊर्जा जो अत्यन्त शक्तिशाली होती हैं प्रभावहीन कर देती हैं और उनका मनोबल स्वतः ही टूट जाता है। दूसरी तरफ अच्छी शक्तियां आपसे जुड़कर आपकी मदद करने के लिए प्रकट हो जाती हैं। 

संस्कारों में युद्ध होता है। आपकी शुभ शक्तिया आपके चारों ओर आभामण्डल बनाकर नकारात्मक अर्थात् बुरी शक्तियों से आपकी रक्षा करती हैं। मतलब आपको मात्र सकारात्मक ऊर्जा का निर्माण करके अपने चारों ओर फैलाते रहना है अर्थात् आपको अपने भीतर के प्रकाश को जलाये रखना है। नकारात्क ऊर्जा आपको स्पर्श भी नहीं कर पायेगी अर्थात् अन्धेरा आपके ऊपर हावी नहीं हो पायेगा और आप सुरक्षित अपनी यात्रा जारी रख सकते हैं।

आप यह अच्छी तरह जानते हैं कि लोग आपका विरोध करने वाले हैं लेकिन वह एक खतरनाक नकारात्मक ऊर्जा है जिस पर आपको ध्यान नहीं देना है अपितु उसे भूल जाना हैं। आपको मात्र अपने आन्तरिक जगत में ध्यान लगाना है शेष सब अपने प्राकृतिक नियम के अनुसार होता रहेगा।
‘विश्वास के नियम को समझने वाले कभी असफल नहीं होते हैं यही प्राकृतिक नियम है।‘
लेखक- एस0 एन0 प्रजापति
अध्यक्ष- ब्रायन ट्रेसी प्रेरक समिति
मो.- 9451946930
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लोग आपको सफल होते देखना चाहते हैं।

Lucknow :  ’’आप जब यह सोंचते हैं कि आपकी तरक्की से लोगों को ईर्षा होती है तब आप कभी भी सच्ची सफलता प्राप्त नहीं कर सकते और जब आप यह समझते हैं कि लोग आपको सफल होते देखना चाहते हैं तब आप अवश्य सफल हो जाते हैं।’’

’’सफलता आपकी शवनात्मक सोंच का परिणाम है।’’ लोगों को अपनी सफलता में सहभागी बनाने का इकलौता उपाय है कि आप सम्पूर्ण समाज के लोगों को अपना हितैषी मानकर उनसे प्रेम करे। कभी भी आप यह न सोंचे कि कोई आपकी सफलता के मार्ग में बाधक बन रहा र्है। वास्तव में दूसरों के विषय में जब आप
’’रचनात्मकता के अभाव में सफलता अनिश्चित हो जाती हैं।\" ’’जब आप यह सोंचते हैं कि लोग आपकी सफलता से खुश हैं तब आप सृजनात्मक अवस्था में पहुँच जाते हैं और सकारात्मक उर्जा उत्पन्न करने लगते हैं।’’ सब अपने हैं कोई पराया नहीं है। जिस क्षण आप ऐसे विचारों को आप अपने मन में पैदा करेंगे उसी क्षण सम्पूर्ण संसार की अच्छी शक्तियाँ जागृत होकर आपके लिए कार्य करना प्रारम्भ कर देंगीं।
सोंचतें हैं कि वे आपके लिए बाधाऐं उत्पन्न कर रहें हैं, तब आपकी ओर नकारात्मक उर्जा आकर्षित होकर आपके कार्यों में अड़चनें पैदा करेंगी क्योंकि आपके चारों ओर जो आभामण्डल फैली हुई है उसे आप सकारात्मक अथवा नकारात्मक उर्जा में अपनी सोंच के अनुसार बदल सकते हैं।

’’जब आप यह सोंचते हैं कि लोग आपकी सफलता से ईर्षा, द्वेष कर रहें हैं तब आप प्रतियोगिता की अवस्था में आ जाते हैं।’’ ऐसा करके आप नकारात्मक लोगों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं। इस प्रकार की उर्जा आपके जीवन में ऐसे ही लोगों को लाकर खड़ा कर देती है। तब उन लोगों से तरह तरह के आलोचनात्मक तर्को को सुनने के लिए मजबूर हो जाते हैं। परिणाम स्वरूप आपका आत्मविश्वास टूटकर बिखर जाता है। हर कोई आपका शत्रु नजर आता है। आप जिधर भी जाते हैं उधर आपको वैसे ही लोग मिलते हैं और कोई आपको दुःखी करने वाली कोई न कोई बात अवश्य कहता है।

’’जब आप यह सोंचते हैं कि लोग आपकी सफलता से खुश हैं तब आप सृजनात्मक अवस्था में पहुँच जाते हैं और सकारात्मक उर्जा उत्पन्न करने लगते हैं। ’’रचनात्मकता के अभाव में सफलता अनिश्चित हो जाती हैं" जैसे कि आप राष्ट्रप्रेम के कारण विदेशों की नीतियों का विरोध करते हैं तब तुलनात्मक दृस्टिकोंण से प्रतियोगिता की अवस्था में हैं इसलिए आपके मन में घुटन, नफरत, ईर्षा क्रोध के विचार चल रहें हैं अतः आपकी सफलता अनिष्चित हो जाती है।’’ परन्तू जब आप विश्व समाज के कल्याण के विषय में सकारात्मक विचार रखते हैं तब आपको सफल बनाने लिए ब्रहमाण्ड की सारी अच्छी शक्तियाँ आपके साथ आ जायेंगी और आपकी सफलता निश्चित हो जायेगी।
आप बार बार इस भवना को प्रबल बनायें कि विश्व के सारे लोग आपको समृद्वशाली, शक्तिशाली एवं सम्पन्न देखना चाहते हैं जिसमें आपके परिवार के सारे सदस्य एव मित्र, पडोसी, रिश्तेदार शामिल हैं। तब आपके जीवन में अद्भुत चमत्कारिक परिवर्तन होंगे। आपको इस भावना में शुभ एवं प्रेम के विचार को अवश्य ही निवेश करना है अर्थात सब अपने हैं कोई पराया नहीं है। जिस क्षण आप ऐसे विचारों को आप अपने मन में पैदा करेंगे उसी क्षण सम्पूर्ण संसार की अच्छी शक्तियाँ जागृत होकर आपके लिए कार्य करना प्रारम्भ कर देंगीं। आपको मालूम ही नहीं होगा कि आप कब सफल हो गये।

इस प्रयोग को आप अभी से प्रारम्भ कर सकते हैं क्योंकि किसी भी अच्छी चीज की शुरूआत करने के लिए कोई भी आदर्श समय नहीं होतां । इसलिए आप अभी शुरू करें और अभी फायदा पायें। इनके परिणामों से आप हैरान रह जायेंगे।

विश्व के देशों के साथ भी यही नियम काम करता है। जब कोई देश स्वयं को दूसरे देशों से उपर उठाने के लिए उनको हराने या नीचा दिखाने की भावना से कार्य करता है तब उस देश की जनता को अनेकों समस्याओं जैसे महंगाई, घूस, भ्रष्टाचार इत्यादि का सामना करना पडता ही है। अतः यदि अपने देश को समृद्वशाली बनाना चाहते हैं तो दूसरे देशों को अपना शत्रु नहीं मित्र समझें।

’प्रतियोगिता में आप दूसरों को हराने की भावना से काम करते हैं।’ अतः आप वास्तव में स्वयं में हारने की उर्जा भर रहें हें और इसलिए आपको जीतने पर भी वास्तविक खुशी नहीं मिल पाती है क्योंकि आपको जितनी खुशी जीतने में नहीं मिलती उससे ज्यादा खुशी दूसरों के हारने में होती है क्योंकि दूसरों को हराने के लिए आपने खेल में भाग लिया था।

आपके आस-पास कार्य-व्यवहार में यदि नकारात्मक विचारों वाले लोगों की संख्या ज्यादा है तो उनको आपने उत्पन्न किया है। क्योंकि आप यही सोंचते हैं कि लोग आपसे ईर्षा करते हैं, लोग आपको आगे बढ़ते नहीं देखना चाहते। लेकिन यह सब मात्र आपकी नकारात्मक सोंच है। सच्चाई यह है कि लोग आपको सफल होते देखकर खुश होते हैं और आपको आगे बढने के लिए हर प्रकार की आर्थिक, वैचारिक मद्द भी करते हैं। आप इस विचार को अपने मन में स्थापित कर ली

जिए आप पायेंगे कि आप व्यक्तिगत, सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक एवं राजनीतिक हर क्षेत्र में सफल हो रहे हैं।
’’जब आप यह सोंचते हैं कि हर कोई आपके साथ है तब आप और आपका समाज विकास कर रहे होते हैं।’’
प्रेरक गुरू एवं लेखक. एस एन प्रजापति
अध्यक्ष. ब्रायन टेरेसी प्रेरक समिति
पता 541 G/19 ग्रीन सिटी नया हैदरगंज
लखनऊ 226003
मो0 9451946930
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क्या आप अपने परिवार के सदस्यों के साथ क्रोध में बातें करते हैं?

Lucknow :  अगर इस प्रश्न का जवाब हाँ में है तो सावधान हो जाइए क्योंकि कि यह जवाब आपके सम्पूर्ण चरित्र को ही नहीं अपितु सम्पूर्ण जीवन को ही नष्ट करने वाला है । आपके दिन की शुरुआत आपके घर के सदस्यों से होती है आज का पूरा दिन सुबह के व्यवहार पर निर्भर है । इसलिए यदि आपने अपने सुबह को सर्वश्रेष्ठ बना लिया तो आपका सारा दिन अधिकतम अच्छा व्यतीत हो सकता है। आपने यदि अपनी पत्नी को क्रोध के वश में होकर कुछ कहा तो आपका यह नकारात्मक व्यवहार आपकी पत्नी को दुखी करने के लिए पर्याप्त है

’’महत्वपूर्ण यह नहीं कि परिवार ने आपको क्या दिया अपितु महत्वपूर्ण यह है कि आपने परिवार को क्या दिया।’’ जिस तरह मकान पति-पत्नि एवं बच्चों के बिना घर नहीं बन सकता उसी तरह पुरुष पत्नी के बिना पति नहीं बन सकता। पारस्परिक मधुर सम्बन्ध बनाये रखने के लिए पति-पत्नि में मधुर सम्बन्धों का आवश्यक होता है अन्यथा परिवार टूटते देर नहीं लगती ।राज्य के राजा को दार्शनिक होना चाहिए अथवा दार्शनिक को ही राजा बनाना चाहिए। आप सबसे पहले अपने परिवार के साथ प्रेम से बातें करने की कला विकसित करें।
जिसके कारण आपकी पत्नी पूरे दिन नकारात्मक ऊर्जा के प्रभाव में समय व्यतीत करेगी जिसके प्रभाव से आप स्वयं को बचा नहीं सकते। क्योंकि घर में अन्य कार्यों के साथ आपके द्धारा कहे कड़वे शब्दों को भी मन में दोहराने का कार्य कर रही हैं। यह एक स्वाभाविक प्रक्रिया है कि मस्तिष्क के अन्दर कहीं न कहीं आपकी बातें घूमती रहेगी और बार बार मन को दुखी करती रहेगी जिसकी ऊर्जा आप तक पहुँचकर आपको भी परेशान करेगी । आप अपने ऑफिस में ही इन बातों से परेशान रहेंगे और आपकी पत्नी घर में परेशान रहेगी। 

अब आप घर की उलझनों के कारण ऑफिस में परेशान हो जाते हैं लेकिन आप स्पष्ट रूप से यह नही समझ पाते हैं कि आपकी वास्तविक समस्या क्या है। परिणाम स्वरूप आप अपने ऑफिस के कर्मचारियों से भी छोटी छोटी बातों पर लड़ने झगड़ने पर ऊतारू हो जाते हैं। वही नकारात्मक ऊर्जा दोनों के साथ टकराती रहती है और एक दूसरे को लड़ाती रहती है। जिसके कारण आप घर में आते ही पत्नी से और आपकी पत्नी आपसे किसी न किसी बात को लेकर एक दूसरे से व्यंगात्मक शब्दों का प्रयोग करना शुरू कर देतें हैं। 

हमारे मस्तिस्क की संरचना ही कुछ इस तरह हुई है कि उसमें जब तक आप सोंच कर कोई नया विचार नहीं ड़ालेगें तब तक वही पुरानी बातें घूमकर बार-बार आतीं रहेंगी और आप समझ ही नहीं पायेंगे कि आप क्यों परेशान और उलझे हुऐ हैं। इन सब नकारात्मक विचारों के बुरे प्रभावों से बचने के लिए एक ही कारगर उपाय है कि आप उसकी जगह पर कोई भी एक अच्छी बात को स्थापित कर दें जो आपको सबसे प्रिय हो । जैसे अपने जीवन की सबसे अच्छी घटना जो आपको हर बार ख़ुशी देती हो अर्थात आपके लक्ष्य से सम्बन्धित कोई ऐसी बात जिसके लिए आपने सपने देखें हैं और उसका पूरा होना निश्चित हो चूका हो । आपको यह जानकर हैरानी होगी कि आपने किसी ऐसे लक्ष्य को अपने जीवन का सबसे महत्वपूर्ण कार्य माना है उसका पूरा होना निश्चित है। क्योंकि दिल की गहराईयों से चाही गई वस्तु अवश्य प्राप्त हो जाती है । इसलिए आप अपने उस विचार के स्थान पर इस नये विचार को रख कर मात्र इस नयी बात को ही याद रखिए और फिर परिणाम देखिए । आपका वह नकारात्मक विचार कब गायब हो जायेगा आप समझ ही नहीं पायेंगे । 

जब आप उस घटना के लिए स्वयं के साथ -साथ दूसरों को भी माफ कर देंगे तब आपके भीतर से वह नकारात्मक विचार स्वतः ही निकल जायेगी और आप तनावरहित व्यवहार कर पाएंगे। उस अवस्था में आप अपनीं पत्नी के साथ बिताये सबसे अच्छे पलों को याद करना शुरू कर दें। आप पायेंगे कि आप अच्छा महसूस करने लगे हैं तथा आपके रिश्तों में दरार पड़ने से भी बच जायेगी। 

’’जिस तरह मकान पति-पत्नि एवं बच्चों के बिना घर नहीं बन सकता उसी तरह पुरुष पत्नी के बिना पति नहीं बन सकता।’’ किसी भी घर के सदस्यों में पारस्परिक मधुर सम्बन्ध बनाये रखने के लिए पति-पत्नि में मधुर सम्बन्धों का आवश्यक होता है अन्यथा परिवार टूटते देर नहीं लगती । प्लेटो नामक यूनानी दार्शनिक ने आदर्श राज्य की कल्पना में लिखता है कि ’राज्य के राजा को दार्शनिक होना चाहिए अथवा दार्शनिक को ही राजा बनाना चाहिए।’’ कहने का तात्पर्य है कि घर का मुखिया यदि अज्ञानी है तो उसमें नैतिक मूल्यों की समझ कम होगी इसलिए वह अपने परिवार के सदस्यों के साथ उचित न्याय नहीं कर पायेगा और वह अपनी के साथ भी अत्याचारी व्यवहार करता रहेगा । परिणाम स्वरूप यदि वह घर का मुखिया है घर को और देश का मुखिया है तो देश को तोड़ देगा । क्योंकि उसमें सकारात्मक और नकारात्मक कार्यों की समझ ही पूरी तरह विकसित नहीं होगी। इसलिए वह अपने साथ-साथ अपने परिवार के सदस्यों के जीवन को भी बर्बाद करने को कारण बनेगा। 

अतः आप सबसे पहले अपने घर को सम्भालने का कार्य सही ढ़ग से करना सीख लें और अपने परिवार के साथ प्रेम से बातें करने की कला विकसित करें। आप यदि प्रेम पूर्वक व्यवहार करते है तो आपके घर में ख़ुशी, शान्ति, समृद्धि एवं दौलत स्वतः ही चलकर आयेगी । क्योंकि घर की लक्ष्मी स्त्री ही होती है और जिस घर में स्त्री का सम्मान होता है उस घर में किसी भी चीज की कमी नहीं होती है । पत्नी के साथ-साथ परिवार या समाज के सदस्यों के भी प्रेम से बातें करें । आपका जीवन सफल हो जायेगा । 

’’महत्वपूर्ण यह नहीं कि परिवार ने आपको क्या दिया अपितु महत्वपूर्ण यह है कि आपने परिवार को क्या दिया।’’

एस.एन. प्रजापति
अध्यक्ष- ब्रायन ट्रेसी प्रेरक समिति
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हर दिन एक उपहार के समान है.

Lucknow :  किसी को उपहार देना या किसी से उपहार लेने में आपको ख़ुशी अवश्य होती होगी। जब आप किसी मित्र या रिश्तेदार को उपहार देते हैं तब मन में ख़ुशी का अहसास होता है। आपके मन में यह विचार रहता है कि आपके द्वारा दिया गया उपहार सामने वाले व्यक्ति को अच्छा लगे अर्थात् उस व्यक्ति को ख़ुशी हो जिसको आप यह उपहार दे रहें हैं।
वास्तव में महत्व उस वस्तु का नहीं अपितु महत्व देने वाले व्यक्ति की भावना का होता है। कोई व्यक्ति आपको कोई वस्तु उपहार में देता है। उस समय वह वस्तु किसी न किसी चीज में ढ़की
कर्मयोगी हर कार्य को अपना सौभाग्य मानकर करते हैं। हर दिन को ईश्वर का दिया हुआ उपहार समझकर जीने की कला विकसित करें। हर दिन के हर कार्य को खुश होकर उसे अपना सौभाग्य मानकर करने से आपका हर दिन सफल हो जायेगा ।
होती है। तब आप उपहार को लेते समय धन्यवाद् देने की औपचारिकता निभाते हैं। ऐसा आप इसलिए करते हैं कि वह उपहार लेते समय आपको अच्छा लगता है क्योंकि देने वाले की भावना भी यही होती है।

आपका जीवन भी ईश्वर का दिया हुआ एक अनमोल उपहार ही है। क्या आपने इस जीवन रूपी उपहार के लिए कभी ईश्वर को धन्यवाद दिया है? क्या आपको मालूम है कि इस उपहार को देते समय ईश्वर को कितनी ख़ुशी होती है? आप वही अहसास कर सकते हैं जो अपने साथ महसूस करते है।

जिस तरह आप किसी के द्वारा दिये गये उपहार पर उसको धन्यवाद देते हैं उसी तरह हर एक दिन उपहार में देने के लिए ईश्वर को धन्यवाद देने से आपके जीवन में समृद्धि आने लगती है। क्योंकि ईश्वर को भी ख़ुशी होती है कि आपको ईश्वर का दिया हुआ उपहार अच्छा लगा। बहुत बार ऐसा होता है कि कितने लोंगो को आज का दिन देखने को ही नहीं मिलता है। क्योंकि वे हमेशा के लिए सोए ही रह जाते हैं। सुबह का सूरज देखने का सौभाग्य ही नही मिल पाता है।
आज के दिन को देखने और जीने का सौभाग्य आपको प्राप्त हुआ तो वह भी ईश्वर की कृपा से, अन्यथा आपके जीवन में सब कुछ यहीं पर रूक जाता। इसलिए हर दिन को ईश्वर का दिया हुआ उपहार समझकर जीने की कला विकसित करें। हर दिन के हर कार्य को खुश होकर उसे अपना सौभाग्य मानकर करने से आपका हर दिन सफल हो जायेगा । और जब हर दिन सफल होगा तो आपका सम्पूर्ण जीवन ही सफल हो जायेगा ।
’’कर्मयोगी हर कार्य को अपना सौभाग्य मानकर करते हैं।’’

लेखक . एस0एन0 प्रजापति
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जिन्दगी अनमोल है

Lucknow :  आप जिन्दगी के बारे में जितना समझने की कोशिश करेंगे उतना ही कम है। आपके जिन्दगी का कोई मोल नहीं है क्योंकि यह अनमोल है। आपके जीवन का एक-एक पल कीमती है इसे व्यर्थ के कार्यों में खर्च न करें ।

जब आप यह स्वीकार करेंगे कि सम्पूर्ण समाज आपसे किसी न किसी रूप में जुड़ा हुआ है तो आपको आपके जीवन का वास्तविक मतलब समझ में आने लगेगा और आपकी सोंच में बड़ा परिवर्तन आयेगा। सोंच में छोटा परिवर्तन हो या बड़ा परिवर्तन हो, बदलाव आपके जीवन मे अवष्य होगा। कुछ ही समय में आप पायेंगे कि आपके कार्य-व्यवहारों

जब सब एक हैं तो भेदभाव क्यों ? क्या स्त्री होना अभिशाप है? इस जिन्दगी से आप ढ़ेर सारी उम्मीदें करते हैं लेकिन क्या कभी यह सोंचा है कि हमने इस जिन्दगी को क्या दिया? बीज को वृक्ष बनने में आनन्द तभी आयेगा जब वह अच्छे पेड़ों के सम्पर्क में रहेगा। जिस प्रकार एक पौधे की कीमत नहीं लगाई जा सकती उसी प्रकार एक बालक एवं बालिका की कीमत नहीं लगाई जा सकती ।’
में परिवर्तन आने लगा है।
अपने आप से एक प्रष्न पूछकर देखिए कि आपको उसका क्या जबाव मिलता है। पूछिए कि मैं इस धरती पर क्यों आया हूँ? क्या मात्र खाने-पीने और भोग-विलास करके वापस चले जाना है? क्या आपको मालूम है कि आप कहाँ से आए थे और कहाँ चले जाएँगे?
मात्र आप इन प्रष्नों के जबाव ढूँढिए तब आपको आपके जीवन के विषय में कुछ रहस्यों की जानकारी होगी। आपको समझ में आएगा कि हर कोई आपका अपना है कोई आपसे अलग नहीं है। क्योंकि हम सब एक ही ऊर्जा से बने हुए हैं। इसलिए हमारे द्धारा होने वाली क्रिया-प्रतिक्रिया लगभग एक समान होतीं हैं।
जब सब एक हैं तो भेदभाव क्यों ? क्या स्त्री होना अभिशाप है? अगर नहीं तो स्त्री का अपमान पुरुषों द्वारा क्यों? आखिर हम क्यों दूसरों को अपने से छोटा समझने की मूर्खता करते है? क्या हम दूसरों को छोटा और खुद को बड़ा समझने से बड़े बन जाते हैं? क्या हम बिना कर्तव्य किये अधिकार लेने की बात कर सकते है? और यदि करते हैं तो दुर्योधन को वह अधिकार क्यों नही मिल गया?

इस जिन्दगी से आप ढ़ेर सारी उम्मीदें करते हैं लेकिन क्या कभी यह सोंचा है कि हमने इस जिन्दगी को क्या दिया? जिन्दगी ने हमें जो कुछ भी दिया है क्या हम उसकी कीमत को कभी चुका सकते है? सच्चाई यह है कि आपको अपने स्तर से परिवर्तन करने की जरूरत है न कि दूसरों से।

बीज वृक्ष को कभी नहीं बदल सकता है उसे स्वयं को बदलना पड़ता है। क्योंकि बीज को वृक्ष बनने में आनन्द तभी आयेगा जब वह अच्छे पेड़ों के सम्पर्क में रहेगा।

जिस प्रकार एक पौधे की कीमत नहीं लगाई जा सकती उसी प्रकार एक बालक एवं बालिका की कीमत नहीं लगाई जा सकती ।’’
एस एन प्रजापति
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सन्देह आपको असफलता के जाल में उलझा देती है


News Imageलखनऊ :  जिस प्रकार मकड़ी अपने ही द्धारा बनाये गये जाल में फँस जाती है। वह उस जाल से जितना ही निकलना चाहती है, उतना ही ज्यादा और उलझती जाती है। उसी प्रकार आपके मन में किसी के प्रति एक नकारात्मक विचार आपको अपना ही शत्रु बना देती है। एक नहीं अपितु अनेकों सगे-सम्बन्धियों के बीच आपको अकेलेपन का अहसास होता रहेगा। क्योंकि आप जहाँ भी रहेंगे आपके साथ आपका सन्देह आपके साथ रहेगा।
’’सन्देह एक ऐसा शत्रु है जो किसी से भी मित्रता नहीं करने देता, अपितु मित्रों को भी शत्रु बना देता है।’’ घर के सदस्यों पर आप किसी

वह मीठे जहर के समान आपके विचारों में फैलता रहता है और एक दिन आपको आपके सभी रिश्तेदारों से अलग कर देता है। मात्र एक ऐसी बात जिसका न कोई सिर है और न ही कोई पैर है। फिर भी वह आपको आपके हाथ-पैरों से दौड़ा-दौड़ा कर थका देता है।
न किसी बात को लेकर अविश्वास करते रहते हैं। एक-दूसरे का चेहरा देखकर यह अन्दाजा लगाते रहेंगे कि वह आपके विषय में क्या सोंच रहा है? बाहर के लोंगो के विषय में भी आप यही सोंचते रहते हैं। आपका मन दूसरों में ही लगा रहता है और अपने विषय में सोंचकर हीन भावना के शिकार हो जाते हैं।
वास्तव में सन्देह आपके भीतर जन्म लेने वाला एक ऐसा भूत है जो कभी दिखाई नहीं देता। लेकिन वह आपके विचारों को खोंखला करने का कार्य लगातार करता रहता है और आपके जीवन को अस्त-व्यस्त कर देता है। दिन-रात आपको चैन नहीं लेने देता है। सोने-जागने एवं खाने-पीने इत्यादि सभी जगहों पर वह आपके अन्दर छिपकर चोर की भाँति चुपचाप बैठा रहता है।
यह ठीक उस डायबिटीज (शूगर) वाली बीमारी की तरह है जो शरीर पर कब्जा करने के बाद शरीर के सम्पूर्ण अंगों को अपने कब्जे में लेकर उन समस्त पोषक तत्वों के स्वादों से व्यक्ति को वंचित कर देती है। व्यक्ति उन मीठे फलों को खाना तो चाहता है लेकिन अपने मन को अपनी मुट्ठी में दबाकर जीवन भर रखे रहता है। ठीक उसी प्रकार व्यक्ति उस मकड़ी के जाले की भाँति नकारात्मक विचारों में उलझा रह जाता है। परिणामस्वरूप आपके जीवन में अनेकों समस्याओं का अम्बार लग जाता है और आप अपने ही जीवन से परेशान, निराश हो जाते हैं।
जब उस पर सकारात्मक सोंच रूपी वर्षा की बूँदें लगातार गिरने लगती हैं तब वह उसी प्रकार धीरें-धीरे साफ होने लगता है जिस प्रकार गंदे पानी से भरे गिलास में लगातार साफ पानी गिराते रहने से गिलास का गन्दा बाहर निकल जाता है और उसमें साफ पानी भरा रह जाता हैं।
वह मीठे जहर के समान आपके विचारों में फैलता रहता है और एक दिन आपको आपके सभी रिश्तेदारों से अलग कर देता है। मात्र एक ऐसी बात जिसका न कोई सिर है और न ही कोई पैर है। फिर भी वह आपको आपके हाथ-पैरों से दौड़ा-दौड़ा कर थका देता है। यह जहर आपके दिमाग को खा जाता है। जिसमें सब कुछ खाली रह जाता है। आपके मन में जब यह विचार आता है कि आपके अपने ही आपके साथ छल, कपट एवं धोखा कर रहें हैं। तब आपको श्रीकृष्ण के बताये हुए श्लोक के अर्थ को समझना है कि जो हुआ सो अच्छा हुआ, जो होगा वह भी अच्छा होगा। क्योकि बुरा कुछ होता ही नहीं है।
जैसा कि महात्मा गाँधी ने कहा है कि ’’त्याग हृदय की वृत्ति है।’’
एस.एन. प्रजापतिं
मो. 9451946930,7505774581
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आप हर किसी से सहायता प्राप्त कर सकते हैं.




Lucknow :  हर किसी से आपको कोई न कोई मदद अवश्य मिलती है। यह प्रकृति का नियम है। क्योंकि इस श्रष्टि की हर वस्तु एक दूसरे से परस्पर निर्भर हैं। इसलिए आपके सम्पर्क में रहने वाले समस्त लोंगो को आपके विसय में लगभग सब कुछ पता होता है। आप अपनी सच्चाई किसी को बताएं या न बताएं लेकिन उनको जानकारी हो ही जाती है। 

प्रेरक वक्ता एवं लेखक.एस एन प्रजापति
मो- 9451946930, 7505774581

कुछ मामलों में आप किसी से मदद माँगने में संकोच कर सकते हैं। लेकिन आप उन लोंगो से अपनी इस समस्या को नहीं छिपा सकते हैं जो आपकी फिक्र करते हैं। उनको आपकी जरूरतों के विषय में पता

सफल व्यक्ति मात्र उन कार्यों को करना अपनी नियति बना लेते हैं जिन्हें करने से सम्पूर्ण समाज को लाभ होता हो। वे हर उस कार्य को करने से स्वयं को बचाते हैं जिनसे नकारात्मक परिणाम प्राप्त होने वाले हों।
चल जायेगा। और वे आपकी मदद इस तरह कर देंगे कि आपका आत्मसम्मान बना रहे। अर्थात् आपके सम्मान को बनाये रखते हुए ही कोई मदद करेंगे। जिससे आपको यह न महसूस हो कि आप उनके मदद के कारण हीनता का अहसास कर रहें हैं। क्योंकि वे लोग आपके सम्मान में कोई कमी नहीं देखना चाहते हैं।
कुदरत के रहस्यों को समझने वाले यह अच्छी तरह जानते हैं कि उनको अपनी मदद कैसे करनी चाहिए। खुद को सफल बनाने के लिए वे दूसरों को सफल बनाने की कला विकसित कर लेते हैं। लोंगो को उनके लक्ष्यों तक पहुँचाना ही उनका लक्ष्य बन जाता है।
ऐसे लोग जो सफल होते हैं। वे हर बार अपने सम्पर्क में आने वाले को कोई न कोई फायदा अवश्य ही पहुँचाते हैं। वे यह नहीं सोंचते हैं कि उनके द्धारा किये गये कार्यों से जो फायदा दूसरों को हुआ है। उसका श्रेय उन्हें मिल जाये अथवा इस भावना से वे किसी कार्य को नहीं करते कि मदद लेने वाला उनका अहसानमन्द हो जाए। वे निःस्वार्थ एवं शुद्ध भावना से दूसरों की मदद करने में अपना सौभाग्य समझते हैं। ऐसा कार्य करने वालें को प्रकृति किसी न किसी रूप में वह सब कुछ देती है जो उसको उसके लक्ष्य तब पहुँचने में मदद करें।
सफल व्यक्ति मात्र उन कार्यों को करना अपनी नियति बना लेते हैं जिन्हें करने से सम्पूर्ण समाज को लाभ होता हो। वे हर उस कार्य को करने से स्वयं को बचाते हैं जिनसे नकारात्मक परिणाम प्राप्त होने वाले हों।
लोंगो से आपको तब तक माँगने की जरूरत नहीं है। जब तक आपको उस वस्तु की सख्त अवश्यक्ता महसूस न हो। एक सीमा तक आप स्वयं को सम्भाल कर रखें। इस सीमा को पार करने की अवस्था में आने पर ही किसी से मदद माँगने के लिए कदम बढ़ाएँ। इसके पहले आप किसी से मदद माँगे आपको किसी न किसी के द्धारा मदद मिल ही जायेगी।
प्राकृतिक नियम के अनुसार हर व्यक्ति को अपनी मदद करने की क्षमता होती है। और वह अपनी मदद स्वयं ही कर सकता है। जो स्वयं की मदद करने की कला जानते हैं वे प्रकृति के नियमों को अच्छी तरह समझते हैं और वही सफल भी होते हैं। जिस तरह कुछ लोग मदद लेने के लिए सोंचते हैं उसी तरह कुछ लोग मदद देने के लिए सोंचते हैं और करते भी हैं। 
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दूसरे आपसे वही सम्मान चाहते हैं जो सम्मान आप दूसरों से चाहते हैं.

लखनऊ :  हर कोई सम्मान का भूखा होता है। यदि कोई व्यक्ति स्वयं का अपमान कराता है अथवा अपमान चाहता है तो इस संसार में उससे बड़ा अभागा दूसरा कोई इन्सान नहीं होगा। कोई भी व्यक्ति किसी भी स्तर का हो। लेकिन वह किसी न किसी रूप में वह अपने लिए सम्मान चाहता है। 

आत्म सम्मान ही वह एक ऐसा जीवन मूल्य है जिसको पाने और बढ़ाने के लिए लोग सम्पूर्ण जीवन प्रयत्नशील रहते हैं। परन्तु मानसिक विकारों के कारण उनके द्धारा कुछ ऐसे असामाजिक व्यवहार हो जाते हैं जिसके फलस्वरूप वे समाज की नज़रों में अपमानित होते हैं। इसलिए उनका व्यवहार

आपको सम्मान चाहिए तो सम्मान दीजिए, धन चाहिए तो धन दीजिए। आप दूसरों को जो देंगे वही आपको भी मिलेगा। आप दूसरों को अपमान देंगे तो आपको भी अपमान ही मिलेगा। ’’आपको आपके अधिकार ही मिलते हैं क्योंकि आपके अपने कर्त्तव्य होते हैं।’’
उनके चरित्र को प्रकट करता है। आपको सम्मान चाहिए तो सम्मान दीजिए। धन चाहिए तो धन दीजिए। आप दूसरों को जो देंगे वही आपको भी मिलेगा। आप दूसरों को अपमान देंगे तो आपको भी अपमान ही मिलेगा। इसलिए आप दूसरों को भरपूर सम्मान दीजिए। ऐसा करते समय यह अहसास करवाने की जरूरत नहीं है कि आप लोंगो का सम्मान करते हैं। क्योंकि यह दिखावा आपके जीवन को खोखला कर देगी। और आप कभी भी प्रशंसनीय कार्यों को सफल ढ़ंग से नहीं कर पायेंगे।
मान लीजिए कि आपके घर कुछ लोग अचानक बिना किसी सूचना के ही आ जाते हैं। लेकिन उनकी मजबूरी है कि वे किसी जरूरी कार्य से कुछ दिनों के लिए रूकेंगे। पुनः वापस चले जायेंगे। ऐसी स्थिति में आपको चाहिए कि आप उनकी भरपूर मदद करें। क्योंकि वे आपके पास इसी उम्मीद से आयें हैं और आपके अच्छे चरित्र की पहचान यहीं से होती है कि आप उनकी सहायता करके उनका सम्मान बढ़ायें।
जरा सोंचिए कि आप उनके स्थान पर होते तो आप क्या चाहते? निष्चित रूप से ऐसी स्थिति में आप उनसे मात्र सम्मान चाहते। इसलिए आपको चाहिए कि आप भी उनके साथ वही व्यवहार करें जो आप अपने प्रति उनसे चाहते हैं। जब आप उनको वही चीज दे पायेंगे जो उनको इस समय चाहिए तो यकीन करें कि आप सफलता की श्रेणी में हैं।
सन्तुलन आपके भीतर से बाहर की तरफ जाती है, इसलिए जब आप लोंगो के साथ वही व्यवहार कर पाने में सफल होते हैं तब आपके जीवन में अनेकों प्रकार से शान्ति के संसाधन एकत्रित होने लगते हैं। ऐसा करके सम्पूर्ण ब्रहृमाण्ड को आप शुभ भावनाएँ भेज रहें हैं और आप यह भी अच्छी तरह जानते हैं कि यह मात्र अपने लिए कर रहें हैं। क्योंकि इस संसार की हर चीज आपसे जुड़ी हुई है। अतः आप जो करते हैं वही चीज कई गुना होकर आपके ही पास आती है।
चूँकि अधिकतम् प्राप्ति का रहस्य यह है कि आप लोंगो को किसी भी रूप में जो कुछ भी दे सकते हैं वह देने की हर सम्भव कोशिश करते रहें। आपको देखकर हैरानी होगी कि आपके जीवन में हर वो वस्तु स्वयं ही चलकर आने लगती है जिसकी आपको जरूरत होती है। आपके मन में स्वस्थ एवं सकारात्मक विचारों का होना जरूरी है। आपको बाहर दिखाने की जरूरत नहीं है अपितु अपने मन के भीतर उन शुभ भावना को विकसित करने की जरूरत है जो आप स्वयं अपने प्रति चाहते हैं। अर्थात् हर बार अपने विचारों में खुशी की ऊर्जा को बढ़ाते रहने की प्रक्रिया से स्वयं को गुजारते रहें। बाहरी कार्य-व्यवहारों में आपको करने की जरूरत नहीं पड़ेगी। यहाँ तो हर कार्य स्वतः ही होते चले जायेंगे और लोग आपको बेहद पसन्द करेंगे। उनका आपके प्रति खुशनुमा विचार ही आपको सकारात्मक ऊर्जा देते रहेंगे और आप लगातार उत्साहित होते रहेंगे।
जो लोग आपके पास आयें हैं वो आपके ऊपर बहुत भरोसा एवं विष्वास करके आयें हैं। आप सौभाग्यशाली हैं कि लोंगो ने आपको इस योग्य समझा है। क्या आप अपनी योग्यता को बनाये रखना चाहेंगे? आपके चरित्र की परख यहीं पर होने वाली है। इसलिए आप जितना हो सके अधिक से अधिक उनकी मद्द करने की कोशिश करें। ऐसा करने से आपको जो खुशी मिलेगी वह अनमोल होगी।
आपका जीवन इसीलिए तो बना है कि आप दूसरों की मदद करते हुए अपनी मदद करने की कला विकसित कर लें और सफल हो जायें। आपके पास आने वाले लोंगो को मात्र एक ही चीज चाहिए और वह है उनका आदर। आपके किसी भी व्यवहार से उनको यह न लगे कि वे आप पर बोझ बन गये हैं। इसलिए आप उनके साथ सर्वश्रेस्ठ व्यवहार करें।
’’आपको आपके अधिकार ही मिलते हैं क्योंकि आपके अपने कर्त्तव्य होते हैं।’’
प्रेरक गुरू एवं लेखक - एस0एन0प्रजापति
अध्यक्ष. ब्रायन ट्रेसी प्रेरक समिति
मो0-9451946930, 7505774581
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