क्या आप यह सोच कर हैरान हो रहें हैं कि इस पल में आप जिस स्थान पर है। आपको वहाँ तक पहुँचाने के लिए अदृष्य षक्ति आपकी मद्द कर रही है। अवष्य ही कोई ऐसी षक्ति है जो आपको वहाँ लेकर जा रही है। जहाँ आपको जाना है। अब आप सोंच रहें होंगे कि वह कौन सी षक्ति है। जिसके सहारे आप चल रहें है। तो उस षक्ति को जानने के लिए तैयार हो जाइए। वह षक्ति है, आपकी सोच। सोच! हाँ सोच। वह भी आपकी ।
क्या आप इस बात से इन्कार कर सकते हैं कि आज आप इस पुस्तक को पढ़ने से पहले इसे पढ़ने के लिए सोचा नहीं होगा ? अवष्य ही आपके मन में ऐसी किसी पुस्तक को पढ़ने का विचार आया होगा। क्योंकि आप ऐसा मार्गदर्षन पाना चाहते होंगे कि कोई व्यक्ति या कोई पुस्तक ऐसी मिल जाती जो आपको आपके भीतर की उन बातों को निकाल कर आपके सामने रख दे जो आप पाना चाहते हैं। इसलिए ही आपके हाथों मेे यह महान पुस्तक आयी है। जिसे पढ़कर आप महान बनने वाले है।
“जिसके साथ श्रेश्ठ विचार रहते हैं, वह कभी भी अकेला नहीं रह सकता।“- स्वामी विवेकानन्द
आप आज जहाँ पर हैं, जिस अवस्था में हैं, वह मात्र आपकी सोच का परिणाम है। जरा सोचिए कि आप इस समय किस स्थान पर हैं और कहाँ हैं? और क्या कर रहें हैं ? और क्यों कर रहें हैं ? आप जो कुछ भी कर रहे हैं वह सब किसके लिए कर रहेे हैं ? जरा सोच कर देखिए कि आपको इन सवालों का कोई सही जबाव मिल रहा है। और आप यह सोच कर हैरान रह जायेंगे कि आपको जो कुछ भी मिला है वह सब आपकी सोच के कारण ही मिला है। तो क्या आज के बाद जो कुछ भी सोचेंगेे और करेंगे तो क्या वे चीजें नहीं मिलेंगी ? विष्वास कीजिए कि आपको अवष्य मिलेंगी। क्योंकि यह ईष्वरीय नियम हैं।
आप धीरे-धीरे उस स्थान पर पहुँच ही जाते हैं, जहाँ पहुँचने के लिए आप सोंच रहे होते हैं। इस प्रक्रिया को आप नहीं बदल सकते। जिस चीज़ को आप बदल नहीं सकते, उसे उसकी हाल पर छोड़ दें। एक साथ आपके मार्ग की अनेकों बाधाएँ समाप्त हो जायेंगी। आप हल्का महसूस करने लगेंगे।
आप धीरे-धीरे उस स्थान पर पहुँच ही जाते हैं, जहाँ पहुँचने के लिए आप सोंच रहे होते हैं। इस प्रक्रिया को आप नहीं बदल सकते। जिस चीज़ को आप बदल नहीं सकते, उसे उसकी हाल पर छोड़ दें। एक साथ आपके मार्ग की अनेकों बाधाएँ समाप्त हो जायेंगी। आप हल्का महसूस करने लगेंगे।
Post a Comment