लखनऊ : जिस प्रकार मकड़ी अपने ही द्धारा बनाये गये जाल में फँस जाती है। वह उस जाल से जितना ही निकलना चाहती है, उतना ही ज्यादा और उलझती जाती है। उसी प्रकार आपके मन में किसी के प्रति एक नकारात्मक विचार आपको अपना ही शत्रु बना देती है। एक नहीं अपितु अनेकों सगे-सम्बन्धियों के बीच आपको अकेलेपन का अहसास होता रहेगा। क्योंकि आप जहाँ भी रहेंगे आपके साथ आपका सन्देह आपके साथ रहेगा।
’’सन्देह एक ऐसा शत्रु है जो किसी से भी मित्रता नहीं करने देता, अपितु मित्रों को भी शत्रु बना देता है।’’ घर के सदस्यों पर आप किसी
वह मीठे जहर के समान आपके विचारों में फैलता रहता है और एक दिन आपको आपके सभी रिश्तेदारों से अलग कर देता है। मात्र एक ऐसी बात जिसका न कोई सिर है और न ही कोई पैर है। फिर भी वह आपको आपके हाथ-पैरों से दौड़ा-दौड़ा कर थका देता है।
न किसी बात को लेकर अविश्वास करते रहते हैं। एक-दूसरे का चेहरा देखकर यह अन्दाजा लगाते रहेंगे कि वह आपके विषय में क्या सोंच रहा है? बाहर के लोंगो के विषय में भी आप यही सोंचते रहते हैं। आपका मन दूसरों में ही लगा रहता है और अपने विषय में सोंचकर हीन भावना के शिकार हो जाते हैं।
वास्तव में सन्देह आपके भीतर जन्म लेने वाला एक ऐसा भूत है जो कभी दिखाई नहीं देता। लेकिन वह आपके विचारों को खोंखला करने का कार्य लगातार करता रहता है और आपके जीवन को अस्त-व्यस्त कर देता है। दिन-रात आपको चैन नहीं लेने देता है। सोने-जागने एवं खाने-पीने इत्यादि सभी जगहों पर वह आपके अन्दर छिपकर चोर की भाँति चुपचाप बैठा रहता है।
यह ठीक उस डायबिटीज (शूगर) वाली बीमारी की तरह है जो शरीर पर कब्जा करने के बाद शरीर के सम्पूर्ण अंगों को अपने कब्जे में लेकर उन समस्त पोषक तत्वों के स्वादों से व्यक्ति को वंचित कर देती है। व्यक्ति उन मीठे फलों को खाना तो चाहता है लेकिन अपने मन को अपनी मुट्ठी में दबाकर जीवन भर रखे रहता है। ठीक उसी प्रकार व्यक्ति उस मकड़ी के जाले की भाँति नकारात्मक विचारों में उलझा रह जाता है। परिणामस्वरूप आपके जीवन में अनेकों समस्याओं का अम्बार लग जाता है और आप अपने ही जीवन से परेशान, निराश हो जाते हैं।
जब उस पर सकारात्मक सोंच रूपी वर्षा की बूँदें लगातार गिरने लगती हैं तब वह उसी प्रकार धीरें-धीरे साफ होने लगता है जिस प्रकार गंदे पानी से भरे गिलास में लगातार साफ पानी गिराते रहने से गिलास का गन्दा बाहर निकल जाता है और उसमें साफ पानी भरा रह जाता हैं।
वह मीठे जहर के समान आपके विचारों में फैलता रहता है और एक दिन आपको आपके सभी रिश्तेदारों से अलग कर देता है। मात्र एक ऐसी बात जिसका न कोई सिर है और न ही कोई पैर है। फिर भी वह आपको आपके हाथ-पैरों से दौड़ा-दौड़ा कर थका देता है। यह जहर आपके दिमाग को खा जाता है। जिसमें सब कुछ खाली रह जाता है। आपके मन में जब यह विचार आता है कि आपके अपने ही आपके साथ छल, कपट एवं धोखा कर रहें हैं। तब आपको श्रीकृष्ण के बताये हुए श्लोक के अर्थ को समझना है कि जो हुआ सो अच्छा हुआ, जो होगा वह भी अच्छा होगा। क्योकि बुरा कुछ होता ही नहीं है।
जैसा कि महात्मा गाँधी ने कहा है कि ’’त्याग हृदय की वृत्ति है।’’
एस.एन. प्रजापतिं
मो. 9451946930,7505774581
- See more at: http://www.vtnewsindia.com/view_newsss.php?nn_id=1367#sthash.XBnu4vxy.dpufवास्तव में सन्देह आपके भीतर जन्म लेने वाला एक ऐसा भूत है जो कभी दिखाई नहीं देता। लेकिन वह आपके विचारों को खोंखला करने का कार्य लगातार करता रहता है और आपके जीवन को अस्त-व्यस्त कर देता है। दिन-रात आपको चैन नहीं लेने देता है। सोने-जागने एवं खाने-पीने इत्यादि सभी जगहों पर वह आपके अन्दर छिपकर चोर की भाँति चुपचाप बैठा रहता है।
यह ठीक उस डायबिटीज (शूगर) वाली बीमारी की तरह है जो शरीर पर कब्जा करने के बाद शरीर के सम्पूर्ण अंगों को अपने कब्जे में लेकर उन समस्त पोषक तत्वों के स्वादों से व्यक्ति को वंचित कर देती है। व्यक्ति उन मीठे फलों को खाना तो चाहता है लेकिन अपने मन को अपनी मुट्ठी में दबाकर जीवन भर रखे रहता है। ठीक उसी प्रकार व्यक्ति उस मकड़ी के जाले की भाँति नकारात्मक विचारों में उलझा रह जाता है। परिणामस्वरूप आपके जीवन में अनेकों समस्याओं का अम्बार लग जाता है और आप अपने ही जीवन से परेशान, निराश हो जाते हैं।
जब उस पर सकारात्मक सोंच रूपी वर्षा की बूँदें लगातार गिरने लगती हैं तब वह उसी प्रकार धीरें-धीरे साफ होने लगता है जिस प्रकार गंदे पानी से भरे गिलास में लगातार साफ पानी गिराते रहने से गिलास का गन्दा बाहर निकल जाता है और उसमें साफ पानी भरा रह जाता हैं।
वह मीठे जहर के समान आपके विचारों में फैलता रहता है और एक दिन आपको आपके सभी रिश्तेदारों से अलग कर देता है। मात्र एक ऐसी बात जिसका न कोई सिर है और न ही कोई पैर है। फिर भी वह आपको आपके हाथ-पैरों से दौड़ा-दौड़ा कर थका देता है। यह जहर आपके दिमाग को खा जाता है। जिसमें सब कुछ खाली रह जाता है। आपके मन में जब यह विचार आता है कि आपके अपने ही आपके साथ छल, कपट एवं धोखा कर रहें हैं। तब आपको श्रीकृष्ण के बताये हुए श्लोक के अर्थ को समझना है कि जो हुआ सो अच्छा हुआ, जो होगा वह भी अच्छा होगा। क्योकि बुरा कुछ होता ही नहीं है।
जैसा कि महात्मा गाँधी ने कहा है कि ’’त्याग हृदय की वृत्ति है।’’
एस.एन. प्रजापतिं
मो. 9451946930,7505774581
Post a Comment